होली: रंगों और हर्षोल्लास का पर्व
होली वसंत ऋतु में मनाया
जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू
पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भारत का एक प्रमुख
और प्रसिद्ध त्योहार है,
जिसे अब विश्वभर में मनाया जाने लगा है। इसे रंगों का त्यौहार भी
कहा जाता है और यह परंपरागत रूप से दो दिन मनाया जाता है। प्रमुख रूप से यह भारत
और नेपाल में मनाया जाता है, साथ ही यह त्यौहार उन अन्य
देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है, जहां अल्पसंख्यक
हिंदू समुदाय निवास करता है।
होली का महत्व और परंपराएँ
होली का त्यौहार दो मुख्य
दिनों में विभाजित होता है:
1.
होलिका दहन: पहले दिन को होलिका जलायी
जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहा जाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक
माना जाता है। इस दिन लकड़ी और उपलों का ढेर जलाया जाता है और उसके चारों ओर लोग
परिक्रमा करते हैं। यह परंपरा प्रह्लाद और होलिका की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है,
जिसमें भक्त प्रह्लाद की रक्षा भगवान विष्णु द्वारा की गई थी और
दुष्ट होलिका अग्नि में जलकर नष्ट हो गई थी।
2.
धुलेंडी (रंगों की होली): दूसरे दिन को
धुलेंडी, धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन भी कहा जाता है। इस दिन
लोग एक-दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं,
ढोल बजाकर होली के गीत गाए जाते हैं और घर-घर जाकर लोगों को रंग
लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूलकर गले
मिलते हैं और फिर से मित्रता स्थापित करते हैं। एक-दूसरे को रंगने और गाने-बजाने
का यह उत्सव दोपहर तक चलता है। इसके बाद लोग स्नान करके विश्राम करते हैं और फिर
नए कपड़े पहनकर शाम को अपने मित्रों और सगे-संबंधियों से मिलने जाते हैं। इस दौरान
मिठाइयों और स्वादिष्ट व्यंजनों का आदान-प्रदान किया जाता है।
होली और वसंत ऋतु
राग-रंग का यह लोकप्रिय
पर्व वसंत ऋतु का संदेशवाहक भी माना जाता है। संगीत और रंगों के इस त्यौहार के
साथ-साथ प्रकृति भी अपने रंग-बिरंगे यौवन के साथ खिल उठती है। फाल्गुन माह में
होने के कारण इसे 'फाल्गुनी' भी कहा जाता है। होली का त्यौहार वसंत
पंचमी से ही आरंभ हो जाता है और उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है।
इस दिन से ही फाग और धमार
के गीत गाने की परंपरा प्रारंभ हो जाती है। खेतों में सरसों के फूल खिल उठते हैं, बाग-बगीचों
में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है, और पूरा वातावरण उल्लास
से भर जाता है। इस अवसर पर पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य
सभी आनंदित हो उठते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ लहलहाने लगती हैं, और बच्चे-बूढ़े सभी संकोच और रूढ़ियों को भूलकर नृत्य-संगीत व रंगों में
डूब जाते हैं। चारों ओर रंगों की फुहार फूट पड़ती है।
होली के विशेष
पकवान
होली के अवसर पर विशेष रूप
से गुझिया बनाई जाती है। यह एक पारंपरिक मिठाई है, जिसे मावा (खोया), मैदा और मेवाओं से बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कांजी के बड़े, दही-भल्ले, पापड़ी चाट, मालपुए
और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जाते हैं।
इसके अलावा, इस दिन
आम्र मंजरी और चंदन को मिलाकर खाने का विशेष महत्व होता है। होली के दिन विशेष रूप
से ठंडाई का सेवन किया जाता है, जिसमें भांग मिलाने की भी
परंपरा है। नए कपड़े पहनकर होली की शाम को लोग एक-दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं,
जहां उनका स्वागत गुझिया, नमकीन और ठंडाई से
किया जाता है।
होली 2025 की
तिथि और मुहूर्त
होलिका दहन और रंगों की
होली की तिथियां हर वर्ष बदलती रहती हैं, क्योंकि यह पर्व चंद्र कैलेंडर के
अनुसार मनाया जाता है।
होली 2025 की
तिथि इस प्रकार होगी:
·
होलिका दहन: 13 मार्च 2025
की रात
·
रंगों की होली: 14 मार्च 2025
होलिका दहन का शुभ
मुहूर्त:
·
रात 11:26 बजे से लेकर रात 12:30 बजे तक (कुल 64 मिनट)
इस शुभ समय में होलिका दहन
करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
निष्कर्ष
होली का त्यौहार प्रेम, सद्भावना,
भाईचारे और उत्सव का प्रतीक है। यह न केवल रंगों का बल्कि
हर्षोल्लास, संगीत, नृत्य और स्वादिष्ट
व्यंजनों का पर्व भी है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि सभी मनमुटाव को भुलाकर
प्रेम और खुशी को अपनाना चाहिए। यह प्रकृति के सौंदर्य, रंगों
और संगीत का संगम है, जो जीवन में नई उमंग और ऊर्जा भर देता
है।
इस प्रकार, होली केवल
एक त्यौहार नहीं, बल्कि सामाजिक मेल-जोल, सांस्कृतिक धरोहर और आनंद का अवसर है, जो हर वर्ग,
हर उम्र और हर स्थान के लोगों को एक साथ लाने का कार्य करता है।
No comments:
Post a Comment